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Hardev vani shabad 3

         Hardev vani shabad 3 तू जल में है तू थल में है कण कण में है एक तू ही। हर पत्ते हर डाली में हर उपवन में है एक तू ही। नदियों की कल कल में तू है झरनों की झर झर में तू। सावन की रिमझिम में तू है वायु की सर सर में तू। कलियों की कोमलता में है फूलों की महक में तू। पपीहे की है पिहु पिहु में कोयल की चहक में तू। यहां तू ही है वहां तू ही है चहूं दिशा में एक तू ही। संध्या में प्रभात में भी दिवस निशा में एक तू ही। तू सूरज में तू चंदा में तारा गण में एक तू ही। कहे ‘हरदेव’ गुरू से जाना चौदह भुवन में एक तू ही।

Hardev vani shabad 2

          Hardev vani shabad 2   सबका साक्षी सर्व आधारा तू निर्गुण निरंकार है। किस विधि कोई गाये तेरी महिमा अपरम्पार है। असीम है तू अनन्त है तू सबमें ही है व्यापक तू। कारण रूप जगत का तू है सृष्टि का संचालक तू। सच्चिदानंद विराट स्वरूपा पूरण से भी पूरण तू। अजन्मा है अविनाशी है ईश्वर नित्य सनातन तू। अडोल है तू अखण्ड है तू सत्‌ स्वरूप परमेश्वर तू। अभेद है तू अछेद है तू नारायण जगदीश्वर तू। लोक तू ही परलोक तू ही है आर तू ही है पार तू ही। हे पुरुषोत्तम दो जहां की है सच्ची सरकार तू ही। तुझ में ही ये ध्यान टिका हो तुझ में ही मन लगा रहे। कहे ‘हरदेव’ स्वास है जब तक नाता तुझसे जुड़ा रहे।  

Hardev vani shabad 1

          हरदेव वाणी -Hardev Vani शब्द- 1 तू ही पिता है तू ही माता नित नित तुझको नमन करूं। तू ही है बन्धु तू ही भ्राता नित नित तुझको नमन करूं। हे जग कर्ता भाग्य विधाता नित नित तुझको नमन करूं। हे सुख सागर आनंद दाता नित नित तुझको नमन करूं। निरंकार है सबसे बड़ा तू नित नित तुझको नमन करूं। पल छिन मेरे साथ खड़ा तू नित नित तुझको नमन करूं। मैं मछली का तू सागर है नित नित तुझको नमन करूं। जुदा न होता तू पल भर है नित नित तुझको नमन करूं। तू ही समाया है अंग संग में नित नित तुझको नमन करूं। रंग जाऊं तेरे ही रंग में नित नित तुझको नमन करूं। जित जाऊं उत तुझे ही पाऊं नित नित तुझको नमन करूं। गुण ‘हरदेव’ तेरे ही गाऊं नित नित तुझको नमन करूं।