Hardev vani shabad 3

         Hardev vani shabad 3


तू जल में है तू थल में है कण कण में है एक तू ही।

हर पत्ते हर डाली में हर उपवन में है एक तू ही।

नदियों की कल कल में तू है झरनों की झर झर में तू।

सावन की रिमझिम में तू है वायु की सर सर में तू।

कलियों की कोमलता में है फूलों की महक में तू।

पपीहे की है पिहु पिहु में कोयल की चहक में तू।

यहां तू ही है वहां तू ही है चहूं दिशा में एक तू ही।

संध्या में प्रभात में भी दिवस निशा में एक तू ही।

तू सूरज में तू चंदा में तारा गण में एक तू ही।

कहे ‘हरदेव’ गुरू से जाना चौदह भुवन में एक तू ही।



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